सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि बढ़ती कार्यबल की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है।
इसमें कहा गया है कि गैर-कृषि क्षेत्र में प्रति वर्ष 78.5 लाख नौकरियों की मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (60 लाख) की मौजूदा योजनाओं को पूरक बनाने की गुंजाइश है। रोज़गार उन्होंने कहा कि 5 वर्षों में 10 लाख से अधिक रोजगार सृजन, मित्रा वस्त्र योजना (20 लाख रोजगार सृजन), मुद्रा योजना और अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन को बढ़ावा दिया जाएगा।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि राज्य सरकारें विकास की प्राथमिकताओं के अनुरूप अनुपालन बोझ को कम करके और भूमि आदि से संबंधित कानूनों में सुधार करके व्यवसायों द्वारा नियुक्तियों को बढ़ावा दे सकती हैं। इसमें कहा गया है कि निजी क्षेत्र में नौकरियां पैदा हुई हैं और भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए अब तक का सबसे अच्छा समय कभी नहीं रहा, वित्त वर्ष 2024 में लाभप्रदता 15 साल के उच्चतम स्तर पर रही। वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 23 के बीच लाभ चार गुना हो गया।
सर्वेक्षण में कहा गया है, “व्यवसायों का यह दायित्व है कि वे पूंजी और श्रम के उपयोग के बीच सही संतुलन बनाए रखें। साथ ही, आय में पूंजी और श्रम का हिस्सा उचित होना भी महत्वपूर्ण है।”
इसमें कहा गया है, “एआई के प्रति आकर्षण और प्रतिस्पर्धात्मकता के क्षरण के भय के कारण, व्यवसायों को रोजगार सृजन के प्रति अपनी जिम्मेदारी और सामाजिक स्थिरता पर इसके परिणामस्वरूप पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखना होगा।”
रोजगार सृजन के लिए श्रम नियमों में पुनर्संतुलन का आह्वान करते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि वर्तमान श्रम नियमों से सामान्य कार्यबल, विशेषकर महिलाओं पर अनपेक्षित प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अन्य देशों के साथ तुलना करने पर पता चलता है कि भारत के सख्त ओवरटाइम वेतन नियम, उत्पादन को कम ओवरटाइम लागत वाले देशों की ओर ले जाकर विनिर्माण क्षेत्र के विकास में संभावित रूप से बाधा डाल रहे हैं।