अमन सहरावत…आज इस नाम से भारत का हर सांस्कृतिक ढांचा है। भारत के नए स्टार और सिर्फ 21 साल की उम्र में ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतना आसान काम नहीं होता। ऐसा करने के लिए आपके अंदर की क्षमता होनी चाहिए जिसके लिए आप हर उस चीज का त्याग कर सकते हैं जो आपको पसंद हो। घर से लेकर अपनी हर वो प्यारी चीज जो आपको मिल जाए। अमन सहरावत ने किया ऐसा. यही वजह है कि वह भारत के लिए ओलंपिक मेडल जीतने वाले सबसे कम उम्र के एथलीट बने हैं। अमन की कहानी इसलिए भी बेहद खट्टी है क्योंकि वह सिर्फ 11 साल की उम्र में अपने माता-पिता दोनों को खो गया था। एक ऐसी उम्र जहां किसी को अपने आने वाले कल का सच तो नहीं रहता, लेकिन इन झलकियों के बाद भी उनके मोटे मकानों ने उन्हें आज यहां तक पहुंचा दिया।
कोच ने बचपन से की तैयारी
दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में भारत के कई महान एथलीट दिए गए हैं। अमन भी इसी स्टेडियम में कोच वैद्य दहिया के निर्देशन में प्रशिक्षण देते हैं। उनके कोच ने इंडिया टीवी से कहा कि जब अमन स्टेडियम में थे तब उनकी स्थिति अच्छी नहीं थी और बचपन में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था। वह आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर थे, लेकिन वह जानते थे कि अमन बड़े मंच पर भारत का नाम खराब कर सकते हैं और उनके अंदर काफी प्रतिभा है।
ओलंपिक में मेडल जीतना था सपना
अमन के कोच ने कहा कि अमन को रेलवे में करीब तीन महीने पहले नौकरी लगी थी। टैबबेल की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। अमन ने नेशनल चैंपियनशिप में लगातार दो साल तक गोल्ड मेडल जीता है। कोच ने अपने बयान में आगे कहा कि अमन से उनकी बात यह है कि वह अमन को सिर्फ एक ही बात कहते हैं कि वह अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वहीं अमन ने भी कहा है कि उनका सपना ओलिंपिक में मेडल जीतना है। आज उन्होंने ओलंपिक में मेडल मेडल ना सिर्फ अपने सपने को पूरा किया है। बल्कि उन्होंने पूरे देश और अपने कोच का सपना भी पूरा किया है.
10 घंटे में घटाया वजन
अमन के सामने भी उनके ब्रॉन्ज मेडल से ठीक पहले विनेश फोगाट जैसी स्थिति आ गई थी। इस मैच के बाद अमन का वजन 61 किलो से ज्यादा हो गया था जो तय सीमा से काफी ज्यादा था। इसके बाद कोच की कड़ी मेहनत के दम पर अमन ने अपना वजन 10 घंटे के अंदर 56.9 रन तक पहुंचाया और ब्रॉन्ज मेडल में मुकाबले के लिए खुद को तैयार किया। अमन पूरी रात मेहनत नहीं करता तो आज शायद भारत के लिए एक मेडल कम होता है।
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