नेपाल में 5 साल में एक बार लगता है गढ़ीमाई मेला, लाखों जानवरों की दी जाती है बलि; जानें क्या है ये खूनी परंपरा


छवि स्रोत: फ़ाइल फ़ोटो
विश्व प्रसिद्ध गढ़ीमाई मंदिर

पड़ोसी देश नेपाल के बारा जिले में गढ़ीमाई देवी स्थान पर हर पांच साल में एक बार मेला लगता है। पॉवर लाख से 5 लाख डॉलर की बलि दे दी गई है। इस बार सशस्त्र सीमा बल और स्थानीय प्रशासन के लिए प्रस्थान को दिन रात एक कर दिया गया था। जानकारी के मुताबिक 15 दिन तक लीज वाले मॉल में इस बार दो ही दिन 8 और 9 दिसंबर को 4200 भैंसों की बलि दी गई। साथ ही, प्रशासन के इंटरनेट की वजह से कम से कम 750 स्टॉक को बंद कर दिया गया है जिसमें बफ़ेलो, भेड़-बकरियां और अन्य जानवर शामिल हैं। इन लैब को गुजरात के जामनगर में रिलायस ग्रुप के वाइल्ड लाइफ पुनर्वास उद्योग केंद्र में भेजा गया है।

बारा जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध गढ़ीमाई महानगरपालिका में पांच साल पुराने मेले का उद्घाटन पिछले 2 दिसंबर को नेपाल के उपराष्ट्रपति राम सहाय यादव ने किया था। यह मेला 15 दिसंबर तक चलेगा। आठ दिसंबर को विशेष पूजा हुई और उसके बाद जिन लोगों की मन्नतें पूरी हुईं, उन्होंने अपनी मन्नत के पशु पक्षी की बलि कथा के अनुसार पूजा की।

खूनी परंपरा से संबंधित क्या है?

इस खूनी परंपरा से संबंधित है कि गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी को सपना आया था कि जेल सेकेसने के लिए माता बलि मांग रही हैं। इसके बाद पुजारी ने जानवर की बलि दे दी। इसके बाद से ही यहां लोग अपनी मुआफी लेकर आते हैं और ऑफर की बलि देते हैं। बताया गया है कि 265 संत से गढ़ीमाई का यह उत्सव होता है। नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में बंदूक की बलि पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। चौदहवें का कहना है कि लोग पूरी तरह से गढ़ीमाई के मंदिर में मंत्रोच्चार करते हैं। विश्व में सबसे विशाल बलि का एक ऐसा ही मंदिर है। बाली के लिए ज्यादातर जानवर बाज़ार जाते हैं।

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम

गढ़ीमाई मेला गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे अधिक सामूहिक बलि प्रथा के नाम दर्ज करवा दर्ज है। यहां सबसे पहले वाराणसी के डोम राज के यहां से आने वाले 5100 साल की बाली दी जाती है। मेला लगभग 15 दिनों का है और इसमें नेपाल और भारत के भक्तों का जमावड़ा होता है। हर दिन लगभग पांच लाख से अधिक राइफलें होती हैं।

भारत में हो रहा विरोध

इस मॉडल में नेपाल के अलावा, भूटान, बांग्लादेश और भारत समेत कई देशों के सैकड़ों कंकाल शामिल हैं। बलि की पार्टी दुनिया के खिलाफ कई देशों में आवाज उठाती रही है। भारत में भी इस बलि प्रथा के खिलाफ आवाज रीस्टार्ट लगी है। भारत में सेमेस्टर लेकर पशुधन उपकरण सक्रिय हो जाते हैं। यह मामला नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच चुका है। साल 2019 में कोर्ट ने पशु बलि पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया था लेकिन आदेश में कहा गया था कि गढ़ीमाई मेले के दौरान पशु बलि को धीरे-धीरे करके कम किया जाए। हालाँकि अदालत ने कहा था कि यह धार्मिक धार्मिक स्थल है, इसलिए इससे जुड़े लोगों की धार्मिक भावनाओं पर कोई आंच नहीं आ सकती।

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By Naresh Kumawat

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